॥दोहा॥
जयकाली कलिमलहरणि, महिमा अगम अपार ।
महिषमर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार ||
॥ चौपाई ॥
अरि मद मान मिटावन हारी।
मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ||
अष्टभुजी सुखदायक माता।
दुष्टदलन जग में विख्याता।।
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै ।
कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला ।
हाथ तीसरे सोहत भाला ।।
चौथे खप्पर खड्ग कर पाँचे ।
छठे त्रिशूल शत्रु बल जाँचे ॥
सप्तम कर दमकत असि प्यारी ।
शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता।
जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी।
निशदिन रटें ऋषी-मुनि ज्ञानी ॥
महाशक्ति अति प्रबल पुनीता ।
तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित-तारिणी हे जग-पालक ।
कल्याणी पापी-कुल घालक ॥
शेष सुरेश न पावत पारा ।
गौरी रूप धरयो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा ।
विधिवत् करें भक्तजन पूजा॥
रूप भयंकर जब तुम धारा ।
दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे ।
भक्तजनों के संकट टारे ।।
कलि के कष्ट कलेशन हरनी ।
भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं।
नारद शारद पार न पावैं ॥
भू पर भार बढ्यौ जब भारी ।
तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता।
विश्वविदित भव संकट त्राता ॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा ।
उसको सदा अभय वर दीन्हा ||
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा ।
काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥
कलुआ भैरों संग तुम्हारे ।
अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी ।
चौंसठ जोगन आज्ञाकारी ॥
त्रेता में रघुवर हित आई ।
दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला ।
भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे ।
कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो ।
स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥
ये बालक लखि शंकर आए।
राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई।
यही रूप प्रचलित है माई ॥
बाढ्यो महिषासुर मद भारी ।
पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करुण पुकार सुनी भक्तन की।
पीर मिटावन हित जन-जन की ॥
तब प्रगटी निज सैन समेता ।
नाम पड़ा माँ महिष – विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं ।
तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥
मान मथनहारी खल दल के ।
सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा ।
पावैं मनवांछित फल मेवा ॥
संकट में जो सुमिरन करहीं ।
उसके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं ।
भव बन्धन सों मुक्ती पावैं॥
काली चालीसा जो पढ़हीं ।
स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा ।
केहि कारण माँ कियौ विलम्बा ॥
करहु मातु भक्तन रखवाली ।
जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी ।
भक्तिभाव युत शरण तुम्हारी ॥
॥ दोहा ॥
प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥