शिव पुराण की महिमा : क्या होता है जब महापापी भी अंत समय में शिव पुराण सुन लेता है ?
एक समय की बात है । एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था । उसका नाम देवराज था । वह बस नाम का ही ब्राह्मण था । वास्तव में वह चरित्र से अत्यंत गिरा हुआ था । उसे न तो ज्ञान से कोई लेना- देना था , न ही ब्राह्मणों वाला कोई गुण उसमें था । वह चोरी, ठगी, ह्त्या, शराब बेचना इत्यादि सभी बुरे कर्मों में लगा रहता था ।
एक बार वह किसी काम से भाग्यवश प्रतिष्ठानपुर ( प्रयाग ) जा पहुँचा । वहाँ उसने देखा कि एक शिवालय ( शिव का मंदिर ) में बहुत सारे साधु – महात्माओं की भीड़ इकट्ठी है । उत्सुकता से वह पहुँचा । उसने देखा कि एक महात्मा शिव पुराण की कथा सुना रहे हैं । वह जाकर लोगों के बीच बैठ गया और कथा सुनने लगा । किन्तु, संयोग से कथा सुनते- सुनते उसे ज्वर ( बुखार ) आ गया । लेकिन, न जाने उस कथा में उसकी ऐसी रूचि हुई कि वह ज्वर में भी बैठकर कथा सुनता रहा । ऐसा करते – करते करीब एक महीने का समय बीत गया । उसका शरीर ज्वर से धीरे- धीरे कमजोर होता चला गया और एक दिन उसकी मृत्यु हो गयी ।
मृत्यु के बाद यम के दूत उसके सूक्ष्म शरीर को जन्जीर से बाँध कर ले जाने लगे । इतने में भगवान् शिव के पार्षद गण भी आ पहुँचे । उन्होंने यमराज के दूतों को मार- पीटकर भगा दिया और देवराज को बहुत ही सुन्दर विमान पर बैठाकर कैलाश पर्वत ले चले।
यमराज के दूत दौड़कर यमराज के पास पहुँचे और सारा वृत्तांत कह सुनाया । तब यमराज ने अपनी दिव्य-दृष्टि से जाना कि देवराज ने अंत समय में शिव पुराण की कथा सुनी थी । इस कारण उसके सारे पाप नष्ट हो गए और वह भगवान् शिव को प्राप्त हुआ । तो ऐसी है शिव पुराण की महिमा ! जिसे सुनकर महापापी भी पापमुक्त हो जाता है ।
शिव पुराण की महिमा : क्या होता है जब महापापी भी अंत समय में शिव पुराण सुन लेता है ?
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